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Thursday, September 9, 2010

एक कहानी

वह एक युवा और खूबसूरत लड़की थी। सिर्फ खूबसूरती ही नहीं बल्कि टैलेंट के मामले में भी वह विलक्षण थी। वह शानदार कविताएँ रचती थी और कई भाषाएँ जानती थी। लेकिन अचानक उसकी जिंदगी में एक ऐसा समय आया कि उसकी ज़िंदगी नर्क से भी बदतर हो गयी और वह अपनी मौत की दुआ माँगने लगी। 

उस लड़की पर जैसे कष्टों का पहाड़ ही टूट पड़े। उसके हाथ-पैरों में अकड़न पैदा होने लगी और देखते ही देखते वह पक्षाघात का शिकार हो गयी। धीरे-धीरे उसकी आँखों से दिखना बंद हो गया। यहाँ तक कि वह अपने सगे-सम्बंधियों को भी पहचानपान पाने में अस्मर्थ हो गयी। खाने से उसे जैसे नफरत सी हो गयी। यहाँ त‍क कि उसकी हलक के नीचे खाने के दो कौर भी उतरने दूभर हो गये। सारा समय वह बिस्तर पर पड़ी-पड़ी दर्द से तड़पती रहती। जब भी कभी उसकी आँख लगती सपनों में उसे साँप, अस्थि पंजर तथा खोपड़ी नज़र आते। अक्सर शाम के समय वह अर्धचेतना की अवस्था में पहुँच जाती और जोर-जोर से चिल्लाने लगती-''लोग मुझे सता रहे हैं।'' और इसी दौरान उसने महसूस किया कि वह अपनी मातृभाषा जर्मन भूल गयी है। अब वह सिर्फ अंग्रेजी ही बोल पा रही थी। जिसने भी यह सुना, यही कहा कि इस पर प्रेतों का साया है। अब तो भगवान ही इसका मालिक है।

यह घटना 1880 की एक सत्य घटना है, जिसे मनोविश्लेषण के पुरोधा सिगमेंड फ्रायड ने अपने वरिष्ठ डॉ0 ब्रूर के मुख से सुनी थी। अविश्वविसनीय और लाइलाज हो गयी उस लड़की की कहानी जब डॉ0 ब्रूर ने फ्रायड को सुनाई तो, सहसा फ्रायड को भी विश्वास नहीं हुआ। डॉ0 ब्रूर ने उस लड़की की बीमारी के सूत्र को बताते हुए कहा- उसे सम्मोहन मूर्छा प्रतिदिन एक निश्चित समय पर ही आती थी। मानो वह अपनी किसी आपबीती घटना में बह रही हो, जो कभी उसी समय घटी होगी।

डॉ0 ब्रूर ने बताया कि वह लड़की अपने बीमार पिता से बहुत प्यार करती थी और जी लगाकर उनकी सेवा करती थी। लेकिन जैसे-जैसे उसके पिता की तबियत बिगड़ती गयी, वैसे-वैसे वह लड़की चिंता में डूबती चली गयी। ए‍क दिन वह अपने पिता की सेवा करते-करते ही बेहोश हो गयी। उस दिन जो वह बिस्तर पर लेटी, तो फिर वह पहले की तरह नहीं उठ पाई।

डॉ0 ब्रूर ने लाख कोशिश की, लेकिन वे उसे ठीक नहीं कर पाए। एक दिन वे जिस दिन लड़की के घर पहुँचे, वह सम्मोहन मूर्च्छा में थी। यह देखकर वे दबे पाँव उसके पास जा पहुँचे और धीरे से बोले- तुम्हें किस बात की पीड़ा है एन0 ओ0?

डॉ0 के इस प्रश्न पर एन ओ चौंकी नहीं। वह सामान्य रूप से एक घटना का वर्णन इस प्रकार करने लगी, जैसे वह उसके सामने ही घट रही हो। उसने बताया कि वह एक ऐसा ही दिन था, जब वह पिता के पास बैठी रो रही थी। उसी समय उसके पिता ने उससे समय पूछा। आँखों में आँसू भरे होने के कारण उसे उस समय कुछ नज़र नहीं आया। अपनी इस दशा पर उसे फिर से रोना आ गया और फूट-फूट कर रोने लगी। 

कुछ मिनट बाद एन ओ सुषुप्तावस्था से जाग उठी। उसने आश्चर्यपूर्वक इधर उधर देखा। उसे अब सारी चीजें स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी थीं। उसके बाद डॉ0 ब्रूर एन ओ से उसकी आपबीती सुनने लगा। जैसे-जैसे वह उसकी कहानी सुनता जाता था, उसकी बीमारियाँ ठीक होती जाती थीं।

एन ओ ने अगले दिन एक अन्य घटना के बारे में बताया, जिसमें वह रात के समय अपने पिता की चारपाई के पास एक कुर्सी पर बैठी सो रही थी। सोते समय उसका हाथ दब जाने के कारण उसका हाथ सुन्न हो गया। उसी समय उसके पिता ने कोई चीज मांगी। एन ओ ने हाथ बढ़ाकर उसे उठाने का प्रयत्न किया, पर वह उसे हिला भी न सकी। उसी समय उसकी मांस पेशियों में अकड़न सी पैदा हो गयी और फिर उसे लकवा मार गया।

इसी प्रकार एन ओ ने वे चार पाँच घटनाएँ डॉ0 ब्रूर को बताईं, जिसके कारण उसकी वह दशा हुई थी। और आश्चर्य का विषय यह था कि जैसे-जैसे वह उन घटनाओं को बताती जा रही थी, उन घटनाओं के द्वारा उसके शरीर पर पड़ने वाले कुप्रभाव दूर होते जा रहे थे।

'तो यह था एन ओ के प्रेतों का रहस्य।' डॉ0 ब्रूर की सारी बात समाप्त होने के बाद फ्रायड मन ही मन मुस्कराया। उसने डॉ0 ब्रूर को धन्यवाद दिया। उस रात फ्रायड को नींद नहीं आई। वह चारपाई पर पड़ा-पड़ा करवटें बदलता रहा। यह देखकर उसकी पत्नी बोली, 'मनोविश्लेषण के महारथी को आज किसी अन्य मनोविश्लेषक की मदद की आवश्यकता है क्या?'

'नहीं।' फ्रायड मुस्कराया, 'मुझे आज एक अमूल्य वस्तु प्राप्त हुई है। अब मानसिक रोगी मेरे पास से निराश नहीं जाएँगे। अब मैं उनकी चिकित्सा सफलतापूर्वक कर सकूँगा।'


क्या कहानी है...............................गजब.............................................


दीपक 

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