मदर टेरेसा ने गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल भी खोला। कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए उनकी सहायता से भारत में 50 अस्पताल खुले। वर्षों पहले आज ही के दिन यानी 26 अगस्त, 1910 को उनका जन्म हुआ था।
दोस्तो, मदर टेरेसा का नाम तो तुमने सुना ही होगा। उनका असली नाम एग्नेस गोंजा था। उनका जन्म यूगोस्लाविया के स्कोपिए शहर में हुआ था। स्कूल की पढ़ाई के दौरान एग्नेस को भारत के बंगाल में रहने वाले दीन-दुखियारों के बारे में पता चला। इसलिए 1929 में वह संन्यासिन बनकर उनकी सेवा करने का व्रत लेकर कलकत्ता पहुंचीं। वहां उन्होंने एक फ्रांसीसी संन्यासिन के नाम पर अपना नाम टेरेसा रख लिया। 1948 में वह भारत की नागरिक बन गईं, क्योंकि भारत को ही उन्होंने अपना घर मान लिया था।
मदर टेरेसा ने गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल भी खोला। कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए उनकी सहायता से भारत में 50 अस्पताल खुले। इस तरह मदर टेरेसा ने जीवन भर दीन-दुखियारों की सेवा की। उनके कामों की दुनिया भर में सराहना हुई और उनको अनेक पुरस्कार मिले, जिनमें विश्व शांति का नोबेल पुरस्कार भी शामिल है। पुरस्कारों से मिली धनराशि भी वह गरीबों की सेवा में ही लगा देती थीं। 1980 में उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ मिला। 15 सितम्बर 1997 को कलकत्ता में उनका निधन हुआ। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन दीन-दुखियारों की सेवा करने की प्रेरणा हमें उनसे हमेशा मिलती रहेगी।
दोस्तो, मदर टेरेसा का नाम तो तुमने सुना ही होगा। उनका असली नाम एग्नेस गोंजा था। उनका जन्म यूगोस्लाविया के स्कोपिए शहर में हुआ था। स्कूल की पढ़ाई के दौरान एग्नेस को भारत के बंगाल में रहने वाले दीन-दुखियारों के बारे में पता चला। इसलिए 1929 में वह संन्यासिन बनकर उनकी सेवा करने का व्रत लेकर कलकत्ता पहुंचीं। वहां उन्होंने एक फ्रांसीसी संन्यासिन के नाम पर अपना नाम टेरेसा रख लिया। 1948 में वह भारत की नागरिक बन गईं, क्योंकि भारत को ही उन्होंने अपना घर मान लिया था।
मदर टेरेसा ने गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल भी खोला। कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए उनकी सहायता से भारत में 50 अस्पताल खुले। इस तरह मदर टेरेसा ने जीवन भर दीन-दुखियारों की सेवा की। उनके कामों की दुनिया भर में सराहना हुई और उनको अनेक पुरस्कार मिले, जिनमें विश्व शांति का नोबेल पुरस्कार भी शामिल है। पुरस्कारों से मिली धनराशि भी वह गरीबों की सेवा में ही लगा देती थीं। 1980 में उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ मिला। 15 सितम्बर 1997 को कलकत्ता में उनका निधन हुआ। आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन दीन-दुखियारों की सेवा करने की प्रेरणा हमें उनसे हमेशा मिलती रहेगी।
कुछ तो सीखो इनसे देश वालो..............................................................................
दीपक
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